एक गांव में रामदास नाम का एक व्यक्ति रहता था। उसकी ईमानदारी के चर्चे दूर–दूर तक फैले हुए थे। लोग उससे अपनी समस्याएं लेकर आते–जाते थे, और वह लोगो के समस्याओं का निवारण चूटकियो में करता था। एक बार एक धनी व्यक्ति उसके पास गया । उसे रामदास को धन दान देने की इच्छा प्रकट की। रामदास को उसके व्यवहार में घमंड नजर आया। उसने उस व्यक्ति से कहा "मुझे धन देने की जरूरत नहीं है बेशक तुम्हारे पास धन का भंडार है, पर तुम्हारी दौलत पाने की इच्छा कभी समाप्त नहीं होगी। क्या तुम जानते हो की तुमसे अधिक गरीब इस समय कोई नही है तुम अपना धन अपने पास रखो" इतना सुनते ही वह शर्मिंदा हुआ और पाने व्यवहार के लिए उसने माफी मांगी। रामदास ने कहा की परोपकार के लिए पेड़ फल देते है, नदिया बहती है। यह एक ऐसा गुण है जो धन से भी बड़ा है। धन मरने के बाद चला जायेगा लेकिन हमारे द्वारा किया गया परोपकारी कार्य मरने के बाद भी याद किया जाएगा।
शिक्षा – सच्चे मन से मनुष्य की सेवा करना सबसे बड़ा धन है। इसे ही परोपकार कहते है।